हा, मेरे खयाल में हल्कू की तुलना अमरीकी बेघर लोगो से की जा सकती हे। जैसे हल्कू हे, वैसे भी अमरीकी गरीब लोग बहुत मजबूर होते हें। उन सब के पास ज़्यादा विकल्प नहीं होते हें। पैसे बहुत कम रहते हें, और जल्दी हाथ से चूथे हें। जैसे हल्कू हें, वैसे गरीब लोगो का बहुत ऋण होते हे और वे मजबूर होते हे ऋण जुकाने में। गरीब लोगो की अधिकार कोई नहीं मानता। इसीलिए उन सब को बहुत कुछ बरदाश करना पडता हे--जैसे हल्कू की सहना के गालीया खाना पडा। वे जहा भी हो, गरीब लोगो के स्थान ज्यादातर एक जैसे होते हें।
हा, ये बात सच हे की अमरीका में ज़्यादा प्रोग्राम होते हें जो गरीब लोगो की मदद कर सकती हें। भारत को एन जैसे प्रोग्राम को अपनाना चाहिए ताकि गरीब लोगो को कम से कम मोका मिल जाए आपने ज़िन्दगी को सुधरने की।
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